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पृथ्वीराज चौहान एक महान साशक का जीवन परिचय और राजपूत चौहान राजा और भारतीय इतिहास

पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय 

विशेषकर भारतीय इतिहास के सन्दर्भ में, पृथ्वीराज चौहान का नाम एक अद्वितीय स्थान रखता है। उन्हें दिल्ली के महान सम्राट के रूप में जाना जाता है, जो कि 12वीं शताब्दी के भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण चरणों में से एक थे। उनका जीवन एक रोमांचक कथा की तरह है, जो भारतीय समाज के मन में अगाध प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है। इस लेख में, हम पृथ्वीराज चौहान के जीवन, उनके योगदान और उनकी महत्वपूर्ण विशेषताओं पर ध्यान देंगे।
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वीरता
और प्रेम की गाथा: पृथ्वीराज चौहान

भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर वीरता और शौर्य की अनेकों कहानियाँ अंकित हैं. इन कहानियों में से एक है पृथ्वीराज चौहान की गाथा, जो वीरता के साथ-साथ प्रेम की मिसाल भी पेश करती है.

चौहान वंश का रत्न: पृथ्वीराज का प्रारंभिक जीवन

पृथ्वीराज चौहान का जन्म 12वीं शताब्दी में दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर की पुत्री कमलावती और अजमेर के शासक सोमेश्वर चौहान के पुत्र के रूप में हुआ था. बचपन से ही पृथ्वीराज में अदम्य साहस और प्रतिभा के लक्षण दिखाई देने लगे थे. मात्र 11 वर्ष की आयु में ही पिता के स्वर्गवासी हो जाने के बाद, पृथ्वीराज ने अजमेर और दिल्ली की गद्दी संभाली.

युवावस्था में ही पृथ्वीराज एक कुशल योद्धा के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके थे. युद्ध कौशल, तलवारबाजी और धनुर्विद्या में उन्हें महारत हासिल थी. साथ ही, उनकी दूरदृष्टि और रणनीति उन्हें अन्य राजाओं से अलग बनाती थी.

वीर योद्धा और विस्तृत साम्राज्य

पृथ्वीराज चौहान ने अपने शासनकाल में कई विजय पताकाएँ फहराईं. उन्होंने गहड़वाल वंश के शासक जयचंद्र गाहड़वाळ को पराजित किया और गुजरात के चालुक्य वंश के शासक को भी युद्ध में हराया. इन विजयों के फलस्वरूप उनका साम्राज्य दिल्ली, अजमेर, हांसी, सिरसा और गुजरात के कुछ भागों तक फैल गया. उन्हें "विजय" और "राय पिथौरा" जैसी उपाधियों से भी जाना जाता था.

पृथ्वीराज चौहान की सबसे बड़ी चुनौती थी मुहम्मद गौरी, गजनी साम्राज्य के शासक, का सामना करना. 1191 ईस्वी में तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज ने मुहम्मद गौरी को निर्णायक रूप से पराजित किया. यह विजय भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है, जिसने विदेशी आक्रमणों को रोकने का संदेश दिया.

प्रेम की कहानी: संयोगिता और स्वयंवर

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पृथ्वीराज चौहान की वीरता के किस्से दूर-दूर तक फैले हुए थे. कन्नौज के राजा जयचंद्र की पुत्री संयोगिता भी पृथ्वीराज के शौर्य से प्रभावित थीं. किंवदंतियों के अनुसार, संयोगिता ने स्वयंवर में पृथ्वीराज की प्रतिमा को माला पहनाकर उन्हें अपना पति चुना था.

हालांकि, इतिहासकार इस कथा को लेकर विभाजित मत रखते हैं. कुछ का मानना है कि यह एक कल्पित कहानी है, जबकि कुछ का कहना है कि संयोगिता को युद्ध में विजयी होने के बाद बंदी बना लिया गया था और बाद में पृथ्वीराज से विवाह हुआ था.

तराइन का द्वितीय युद्ध और शहादत

tarain ka yudh

मुहम्मद गौरी तराइन के प्रथम युद्ध में मिली हार से क्षुब्ध था. उसने 1192 ईस्वी में पृथ्वीराज से बदला लेने के लिए एक विशाल सेना के साथ पुनः आक्रमण किया. तराइन के द्वितीय युद्ध में गद्दारों की वजह से पृथ्वीराज को पराजय का सामना करना पड़ा.

युद्ध में पृथ्वीराज घायल हो गए थे. कहा जाता है कि जयचंद्र के सेनापति ने विश्वासघात कर पृथ्वीराज को मुहम्मद गौरी के हाथों में सौंप दिया था


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