पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय
वीरता और प्रेम की गाथा: पृथ्वीराज चौहान
चौहान वंश का रत्न: पृथ्वीराज का प्रारंभिक जीवन
पृथ्वीराज चौहान
का
जन्म
12वीं
शताब्दी में
दिल्ली
के
राजा
अनंगपाल तोमर
की
पुत्री
कमलावती और
अजमेर
के
शासक
सोमेश्वर चौहान
के
पुत्र
के
रूप
में
हुआ
था.
बचपन
से
ही
पृथ्वीराज में
अदम्य
साहस
और
प्रतिभा के
लक्षण
दिखाई
देने
लगे
थे.
मात्र
11 वर्ष
की
आयु
में
ही
पिता
के
स्वर्गवासी हो
जाने
के
बाद,
पृथ्वीराज ने
अजमेर
और
दिल्ली
की
गद्दी
संभाली.
युवावस्था में
ही
पृथ्वीराज एक
कुशल
योद्धा
के
रूप
में
ख्याति
प्राप्त कर
चुके
थे.
युद्ध
कौशल,
तलवारबाजी और
धनुर्विद्या में
उन्हें
महारत
हासिल
थी.
साथ
ही,
उनकी
दूरदृष्टि और
रणनीति
उन्हें
अन्य
राजाओं
से
अलग
बनाती
थी.
वीर योद्धा और विस्तृत साम्राज्य
पृथ्वीराज चौहान
ने
अपने
शासनकाल में
कई
विजय
पताकाएँ फहराईं.
उन्होंने गहड़वाल वंश
के
शासक
जयचंद्र गाहड़वाळ को
पराजित
किया
और
गुजरात
के
चालुक्य वंश
के
शासक
को
भी
युद्ध
में
हराया.
इन
विजयों
के
फलस्वरूप उनका
साम्राज्य दिल्ली,
अजमेर,
हांसी,
सिरसा
और
गुजरात
के
कुछ
भागों
तक
फैल
गया.
उन्हें
"विजय"
और
"राय
पिथौरा"
जैसी
उपाधियों से
भी
जाना
जाता
था.
पृथ्वीराज चौहान
की
सबसे
बड़ी
चुनौती
थी
मुहम्मद गौरी,
गजनी
साम्राज्य के
शासक,
का
सामना
करना.
1191 ईस्वी
में
तराइन
के
प्रथम
युद्ध
में
पृथ्वीराज ने
मुहम्मद गौरी
को
निर्णायक रूप
से
पराजित
किया.
यह
विजय
भारत
के
इतिहास
में
एक
महत्वपूर्ण घटना
मानी
जाती
है,
जिसने
विदेशी
आक्रमणों को
रोकने
का
संदेश
दिया.
प्रेम की कहानी: संयोगिता और स्वयंवर
पृथ्वीराज चौहान
की
वीरता
के
किस्से
दूर-दूर तक फैले
हुए
थे.
कन्नौज
के
राजा
जयचंद्र की
पुत्री
संयोगिता भी
पृथ्वीराज के
शौर्य
से
प्रभावित थीं.
किंवदंतियों के
अनुसार,
संयोगिता ने
स्वयंवर में
पृथ्वीराज की
प्रतिमा को
माला
पहनाकर
उन्हें
अपना
पति
चुना
था.
हालांकि, इतिहासकार इस
कथा
को
लेकर
विभाजित मत
रखते
हैं.
कुछ
का
मानना
है
कि
यह
एक
कल्पित
कहानी
है,
जबकि
कुछ
का
कहना
है
कि
संयोगिता को
युद्ध
में
विजयी
होने
के
बाद
बंदी
बना
लिया
गया
था
और
बाद
में
पृथ्वीराज से
विवाह
हुआ
था.
तराइन का द्वितीय युद्ध और शहादत
मुहम्मद गौरी
तराइन
के
प्रथम
युद्ध
में
मिली
हार
से
क्षुब्ध था.
उसने
1192 ईस्वी
में
पृथ्वीराज से
बदला
लेने
के
लिए
एक
विशाल
सेना
के
साथ
पुनः
आक्रमण
किया.
तराइन
के
द्वितीय युद्ध
में
गद्दारों की
वजह
से
पृथ्वीराज को
पराजय
का
सामना
करना
पड़ा.
युद्ध
में
पृथ्वीराज घायल
हो
गए
थे.
कहा
जाता
है
कि
जयचंद्र के
सेनापति ने
विश्वासघात कर
पृथ्वीराज को
मुहम्मद गौरी
के
हाथों
में
सौंप
दिया
था.
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